शनिवार, 25 अप्रैल 2009

शिखा



दोस्तों, मैं ये अपनी पहली कहानी लिख रहा हूँ। शिखा मेरे साथ काम करती है। वो बहुत ही सुंदर और सेक्सी लड़की है। ऑफिस के सभी लड़के उस पर लाइन मारते हैं। पर वो किसी को लिफ्ट नही देती थी, पर मुझे वो थोड़ी बहुत लिफ्ट दे देती थी। मैं उसे बहुत ही चाहता था। उसका जिस्म एकदम सेक्सी और मलाई जैसा दिखता था। मैं उसे चोदना चाहता था। मेरे मन में बड़ी ही तमन्ना थी कि उस से शादी करूँ और उसके साथ सुहागरात मनाऊँ। उसकी चूची बड़ी ही अकर्षक थी।
आखिर एक दिन आ ही गया जब वो मेरे साथ सेक्स करने को तैयार हो गई। मैं उसे ऑफिस के एक खाली अकेले कमरे में ले गया। उसके दिल की धडकनों की आवाज़ मुझे ज़ोरों से सुनाई दे रहे थी। मैंने उसे कमरे में एक मेज पर बिठा कर उसके होठों को चूसना शुरू कर दिया।
उसकी साँसें तेज़ी से चलने लगीं। उसने भी मेरा साथ देना शुरू कर दिया मैंने उसके चूचियों को ऊपर से सहलाने लगा। उसके मुँह से अहह्ह्ह्ह्हह की सिसकरियाँ निकलने लगीं। मैंने अपना हाथ नीचे की तरफ़ खिसकाना शुरू किया, उसके दिल की धड़कनें बढती ही जा रहीं थीं। मैंने अपना हाथ अब उसकी सलवार के अन्दर घुसा दिया और पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत को सहलाने लगा। शिखा अब बिल्कुल गरम हो चुकी थी, वो अब चुदने के लिए बेकरार थी।
मैंने उसका सलवार-कुर्ता उतार दिया। अब शिखा केवल ब्रा और पैंटी में ही थी। गुलाबी रंग की ब्रा-पैंटी में वह बहुत ही सेक्सी लग रही थी। उसकी चूचियाँ ब्रा में से निकलने को बेताब हो रहीं थीं। मैंने उसकी ब्रा को अलग किया। शिखा के दोनों दूध अलग हो गए। शिखा की चूचियाँ कठोर हो रहीं थीं। मैंने जैसे ही शिखा की चूची के निप्पल को मुँह में लेकर चूसा, उसकी सिसकारी निकल गई। शिखा ने भी अब अपना हाथ मेरे पैंट के अन्दर डाल दिया। मैं उसकी चुचियों को पागलों की तरह चूस रहा था। उसने अपने हाथ से मेरा लंड मसलना शुरू कर दिया।
मैंने उसकी पैंटी के ऊपर से ही उसकी योनि का एक चुम्बन लिया, शिखा पागलों की तरह चिल्ला उठी। मैंने उसकी पैंटी को उतार दिया। शिखा अपनी चूत को अपने हाथों से छुपा रही थी, उसे शरम आ रही थी। मैंने उसके हाथों को हटा कर उसकी चूत को जैसे ही देखा मैं हैरान रह गया। गुलाबी रंग की चूत बिना बालों के बड़ी ही सुंदर लग रही थी। मैंने उसके जिस्म को पैरों से लेकर उसके होठों तक बड़ी ही जोश से चूमा, कोई भी अंग और जगह खाली नही बची होगी, जहाँ मैंने उसे नही चूमा हो।
अब शिखा बोली- प्लीज़ जल्दी करो मेरे बदन में आग लग रही है !
मैं बोला- मेरी जान ऐसी भी क्या जल्दी है। पहले मुझे तुम्हारी चूत को चूसने तो दो। और मैंने उसकी चूत को चूसना शुरू कर दिया। शिखा के मुँह से जोर-जोर की सिसकारियाँ निकल रहीं थीं। हाय ये क्या कर रहे हो ? मेरे तो आआआआआआ उस्स्स्स्स्स्स्स.................. स्स्स्स्स्स्स्स्स... धीरे... प्लीज़... दर्द हो रहाआआआ है... उईए... म्माआआआ.... आआआहह..... रुक्कककककक..... जाओ..... मैं उसकी चूत में अपनी ऊँगली डाल कर अन्दर-बाहर करने लगा।
शिखा बोली- प्लीज़ अब मुझे मत तरसाओ, प्लीज़ अपना लंड मेरी चूत में घुसा दो।
मैं बोला- अभी नहीं डार्लिंग... अभी तो मज़ा आया है। मैंने उसकी चूत में अपनी जीभ डाल कर जैसे ही अन्दर बाहर किया, उसने मेरा सिर अपने हाथों से ज़ोर से पकड़ कर अपनी जांघों से जोरों से दबा लिया और उसकी चूत से पानी निकलने लगा, शिखा झड़ने वाली थी। मैं रुक गया और बोला- अब तुम मेरा लंड अपने मुंह में लेकर चूसो।
शिखा शरमाने लगी, पर वो मान गई और मुँह में मेरा लंड लेकर चूसने लगी। उसने काफी देर तक मेरा लंड चूसा और मैं अपने एक हाथ की ऊँगली उसकी चूत में करने लगा। उसके मुंह से फुच्च-फुच्च की आवाज़ आ रही थी। अब मैंने अपना लंड उसके मुंह से निकाल कर उसके चूत की फाँकों पर रगड़ने लगा, शिखा के मुँह से सिसकरियाँ निकल रहीं थीं। शिखा पागल हो रही थी चुदने के लिए।
मैंने अपने लंड का सुपाड़ा उसकी चूत पर रख कर थोड़ा सा धक्का दिया, सुपाडा पूरा चूत के अन्दर चला गया। शिखा की चीख़ निकल गई और वह बोली, हाय मैं मर गई, प्लीज़ बाहर निकालो !
मैं बोला- अभी एक मिनट में दर्द बन्द हो जाएगा और तुम्हें मज़ा आने लगेगा। अब मैंने थोड़ा सा लंड और अन्दर किया, शिखा चिल्लाने लगी, बोली, "प्लीज़ बाहर निकाल लो, नहीं तो मर जाऊँगी ! रुक जाओ प्लीज़ ! दर्द हो रहा है, अभी इतना ही अंदर डाल कर चोदो मुझे।"
उसकी सील टूट चुकी थी और वो अब मेरा लंड अपनी चूत में आराम से अंदर ले रही थी। मैंने उसे धीरे-धीरे चोदना शुरू कर दिया। दो-तीन मिनटों में उसका दर्द जब कुछ कम हुआ तो उसे मज़ा आने लगा। वो बोली, "थोड़ा और अंदर डाल कर और तेज़ी... से चोदो... मुझे !"
मैने थोड़ा और अंदर दबाया तो मेरा लंड उसकी चूत में ४" तक घुस गया। मैं अपनी गति को बढ़ाते हुए उसे चोदने लगा। वो अपना चूतड़ आगे-पीछे करते हुए मेरा साथ दे रही थी। पाँच मिनट तक चोदने के बाद वो बहुत ज्यादा जोश में आ गई। मैंने अपना पूरा लंड एक ही बार में उसकी चूत में धकेल दिया, शिखा को बहुत दर्द हुआ और उसकी चूत से खून भी निकल आया। वो डरने लगी पर खून ज़ल्दी ही बंद हो गया।
अब मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए अब शिखा को मज़ा आने लगा और वो भी अपने चूतडों को हिला-हिला कर मेरा साथ देने लगी। उसके मुँह से बड़ी ही मादक-मादक आवाजें निकल रहीं थीं। शिखा कहने लगी, प्लीज़ ज़ोर से धक्का लगाओ और सारा लंड अन्दर कर दो बड़ा ही मज़ा आ रहा है।
मैंने अब अपना सारा ६ इंच का लंड उसकी चूत के अन्दर घुसा दिया। शिखा के मुंह से स्स्स्स्स्स्स्स आह आह्ह्ह उस्सुसुसू जैसी मादक आवाजें निकाल रही थी। मैंने अब शिखा की चूत में से अपना लंड निकाल कर उसको घोड़ी स्टाईल में खड़ा कर उसकी चूत में लंड घुसा दिया और धक्के मारने लगा। उसको और मज़ा आने लगा। उसके चूतड़ मुझे बहुत ही आनंद दे रहे थे। २ मिनट में ही वो अपनी चूतड़ उठा-उठा कर मेरे हर धक्के का जवाब देने लगी। मैंने अपनी स्पीड और बढ़ा दी। मुझे कुछ हो रहा है। लगता है मेरी चूत से पानी निकलने वाला है। खूब ज़ोर-ज़ोर से धक्का लगाओ।"
मैं समझ गया कि वो झड़ने वाली है। मैंने बहुत ही तेज़ी के साथ उसकी चुदाई शुरू कर दी। वो बोली, "आआआ!!! मैंऽऽऽ आआआऽऽऽ रहीऽऽऽ हूँऽऽऽ और तेज़ ऽऽऽ और तेज़ ऽऽऽ" उसकी चूत से पानी निकलने लगा और मेरा सारा लंड भीग गया। मैं भी बिना रुके उसे आँधी की तरह चोदता रहा। लगभग २० मिनट तक चोदने के बाद मैं उसकी चूत में ही झड़ गया। इस दौरान वो भी ३ बार झड़ चुकी थी। लंड का पूरा पानी उसकी चूत में निकल जाने के बाद मैं हट गया।
आपको शिखा की चुदाई कैसे लगी प्लीज़ मुझे लिखें।

कुवारी नोकरानी

मैं ३५ साल का मस्त जवान हूँ और मेरा लण्ड चोदने के लिए तड़पता रहता है। बीवी को चोद-चोद कर ये अब कुछ नया चाहता है। हमारे घर में पार्ट-टाईम नौकरानियाँ काम करतीं हैं। लेकिन कोई भी सुन्दर नहीं थी। बीवी बड़ी होशियार थी। सब काली-कलूटी और भद्दी-भद्दी चुन-चुनकर रखती थी। जानती थी ना कि मेरे मियाँ को चूत का बड़ा शौक है।
आख़िर में जब कोई नहीं मिली तो एक को रखना ही पड़ा - जो कि १९-२० साल की मस्त जवान कुँवारी लड़की थी। साँवला रंग था और क्या यौवन ! सुन्दर ऐसी की देख कर ही लण्ड खड़ा हो जाए। मम्मे ऐसे गोल-गोल और निकलते हुए कि ब्लाउज़ में समाते ही नहीं।
बस मैं मौके की तलाश में था क्योंकि चोदने के लिए एकदम मस्त चीज़ थी। सोच-सोच कर मैंने कई बार मुट्ठ भी मारी। बहुत ज़ोरों की तमन्ना थी कब मौक़ा मिले और कब मैं उसके बुर में अपना लंड घुसा दूँ। वह भी पैनी निगाहों से मुझे देखती रहती थी। और मैं उसके बदन को चोरी-चोरी नापता रहता था। मन-ही-मन उसे कई बार नंगा कर दिया। उसकी गुलाबी चूत को कई बार सोच-सोच कर मेरा लंड गीला हो जाता था और खड़ा होकर फड़फड़ा रहा होता। हाथ मचलते रहते कब उसकी गोल-गोल चूचियों को दबाऊँ।
एक बार चाय लेते समय जब मैंने उसे छुआ तो मानों करंट सा लग गया और वो शरमाती हुई खिलखिला पड़ी और भाग गई। मैंने मन-ही-मन कहा मौका आने दे, रानी ! तुझे खूब चोदूँगा। लण्ड तेरी चिकनी बुर में डाल कर भूल जाऊँगा। चूची को चूस-चूस कर प्यास बुझाऊँगा और दबा-दबा कर मज़े लूँगा, होठों को तो खा ही जाऊँगा। रानी उसका प्यारा सा नाम था।
कहते हैं उसके घर में देर है पर अन्धेर नहीं। एक दिन मेरी बीवी ने कहा- मैं मायके जा रही हूँ, रानी आएगी तो घर का काम करवा लेना।
रविवार का दिन था। बच्चे भी बीवी के साथ चले गए। और मेरे लंड महाराज तो उछल पड़े। मौका चूकने वाला नहीं था। लेकिन शुरू कैसे करें। कहीं चिल्लाने लगी तो? गुस्सा हो गई तो? दोस्तों, तुम यह जान लो कि लड़कियाँ कितनी ही शर्माएँ, लेकिन दिल में उनकी इच्छा रहती है कि कोई उन्हें छेड़े या चोदे।।
मैंने रानी को बुलाया और उसे देखते हुए कहा, "रानी, तुम कपड़े इतने कम क्यों पहनती हो?"
वो बोली, "बाबूजी, इतनी पैसे कहां कि चोली ख़रीद सकूँ ! आप दिलवाएँगे?"
मैंने कहा, "दिलवा तो मैं दूँगा। लेकिन पहले बता कि क्या आज तक किसी ने तुझे छेड़ा है।"
उसने जवाब दिया, "नहीं साहब।"
मैंने कहा, "इसका मतलब तू एकदम कुँवारी है।"
"जी साहब।"
"अगर मैं कहूँ कि तू मुझे बहुत अच्छी लगती है, तो तू नाराज़ तो नहीं होगी?"
"नाराज़ क्यों होऊँगी साहब। आप तो बहुत अच्छे हो।"
बस यही उसका सिग्नल था मेरे लिए। मैंने हिम्मत रख कर पूछा, "अगर मैं तुम्हे थोड़ा प्यार करूँ तो तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा?"
अपने पैर की उँगलियों को ज़मीन पर रगड़ती हुई वह बोली, "आप तो बड़े वो हो साहब।"
मैंने आगे बढ़ते हुए कहा, "अच्छा, अपनी आँखें बन्द कर ले, और अभी खोलना नहीं।"
उसने आँखें बन्द कीं और हल्के से मुँह ऊपर की तरफ कर लिया। मैंने कहा - बेटा लोहा गरम हैं, मार दे हथौड़ा। आहिस्ता से पहले मैंने उसके गालों को अपने हाथों में लिया और फिर रख दिए अपने होंठ उसके होठों पर। हाय, क्या गज़ब की लड़की थी। क्या स्वाद था। दुनिया की कोई भी शराब उसका मुक़ाबला नहीं कर सकती थी। ऐसा नशा छाया कि सब्र के सारे बाँध टूट गए। मेरे होठों ने कस कर उसके होठों को चूसा और चूसते ही रहे। मेरे दोनों हाथों ने ज़ोर से उसके बदन को दबोच लिया। मेरी जीभ उसकी जीभ का स्वाद लेने लगी। इस दौरान उसने कुछ नहीं कहा। बस मज़ा लेती रही। अचानक उसने आँखों खोलीं और बोली, "साहबजी, बस, कोई देख लेगा।"
मैंने कहा, "रानी, अब तो मत रोको मुझे। सिर्फ एक बार।"
"एक बार, क्या साहब?"
मैंने उसके कान के पास जाकर कहा, "चुदवाएगी? एक बार बुर में लंड घुसवाएगी? देख मना मत करना। कितनी सुन्दर है तू।" यह कहकर मैंने उसे कस कर पकड़ लिया और दाहिने हाथ से उसकी बाईं चूचि को दबाने लगा। मुँह से मैं उसके गालों पर, गले पर, होठों पर, और हर जगह चूमने लगा... पागलों की तरह। क्या चूची थी, मानों सख्त संतरे। दबाओ तो छिटक-छिटक जाएँ। उफ्फ, मलाई थी पूरी की पूरी।
रानी ने जवाब दिया, "साहबजी, मैंने ये सब कभी नहीं किया। मुझे शरम आ रही है।"
उखड़ी साँसों से मैंने कहा, "हाय मेरी जान रानी, बस इतना बता, अच्छा लगा या नहीं। मज़ा आ रहा है कि नहीं? मेरा तो लण्ड बेताब है जानेमन। और मत तड़पा।"
"साहबजी, जो करना है जल्दी करो, कोई आ जाएगा तो?"
बस मैंने उसके फूल जैसे बदन को उठाया और बिस्तर पर ले गया और लिटा दिया। कस कर चूमते हुए मैंने उसके कपड़ों को उतारा। फिर अपने कपड़े भी जल्दी से उतारे। ७" मेरा लण्ड फड़फड़ाते हुए बाहर निकला। देखकर उसकी आँखें बन्द हो गईं। बोली, "हाय, ये क्या है? ये तो बहुत बड़ा है।"
"पकड़ ले इसे मेरी जान।" कहते हुए मैंने उसके हाथ को अपने लंड पर रख दिया। उसके बदन को पहली बार नंगा देखकर तो लंड ज़ोर से उछलने लगा। चूची ऐसी मस्त थी कि पूछो मत। चूत पर बाल इतने अच्छे लग रहे थे कि मेरे हाथ उसकी तरफ बढ़ ही गए। क्या गरम चूत थी। उँगली आहिस्ता से अन्दर घुसाई। रस बह रहा था और उसकी बुर गीली हो गई थी। गुलाबी-गुलाबी बुर को उँगलियों से अलग किया, और मैंने अपना लंड आहिस्ता से घुसाया। हाथ उसकी चूचियों को मसल रहे थे। मुँह से उसके होठों को मैं चूस रहा था।
"आह, साहबजी, आहिस्ता, लग रहा है।"
"रानी, मज़ा आ रहा है?"
"साहबजी, जल्दी करिए ना जो भी करना है।"
"हाँ मेरी जान, बोल क्या करूँ?"
"डालिए ना। कुछ करिए ना।"
"रानी, बोल क्या करूँ।" कहते हुए मैंने लंड को थोड़ा और घुसाया।
"अपना ये डाल दीजिए।"
"बोल ना, कहाँ डालूँ मेरी जान, क्या डालूँ।"
"आप ही बोलिए ना साहबजी, आप अच्छा बोलते हैं।"
"अच्छा, ये मेरा लंड तेरी चिकनी और प्यारी बुर में घुस गया। और अब ये तुझे चोदेगा।"
"चोदिए ना, साहबजी।"
उसके मुँह से सुनकर तो लंड और भी मस्त हो गया। "हाय रानी, क्या बुर है तेरी, क्या चूची है तेरी। कहाँ छुपा कर रखा था इतने दिन। पहले क्यों नहीं चुदवाया।"
"साहबजी, अपका भी लंड बहुत मज़ेदार है। बस चोद दीजिए जल्दी से।" और उसने अपनी चूतड़ों को ऊपर उठा लिया।
अब मैंने उसकी दाहिनी चूची को मुँह में लिया और चूसने लगा। एक हाथ से दूसरी चूची को दबाते हुए, मसलते हुए, मैं उछल उछल कर ज़ोर-ज़ोर से चोदने लगा। जन्नत का मज़ा आ रहा था। ऐसा लग रहा था बस चोदता ही रहूँ, चोदती ही रहूँ इस प्यारी-प्यारी चूत को। मेरा लंड ज़ोर-ज़ोर से उसकी गुलाबी गीली गरम-गरम बुर को चोद रहा था।
"हाय रानी, चोद रहा है ना। बोल मेरी जान, बोल।"
"हाँ साहब, चोद रहा है। बहुत मज़ा आ रहा है। साहब आप बहुत अच्छा चोदते हैं। साहब, ये मेरी बुर आपके लंड के लिए ही बनी है। है ना साहब। साहब, चूची ज़ोर से दबाइए। साहब, ओओओओहह, मज़ा आ गया, ओओओओओहहहहह।" अचानक, हम दोनों साथ-साथ ही झड़े। मैंने अपना सारा रस उसकी प्यारी-प्यारी बुर में घोल दिया। हाय क्या बुर थी। क्या लड़की थी, गरम-गरम हलवा। नहीं उससे भी ज़्यादा स्वादिष्ट। मैंने पूछा, "रानी, तेरा महीना कब हुआ था री?" शर्माते हुए बोली, "परसों ही खतम हुआ। आप बड़े वो हैं, यह भी कोई पूछता है?" बाहों में भर कर होठों को चूमते हुए, चूचियों को दबाते हुए मैंने कहा, "मेरी जान, चुदवाते-चुदवाते सब सीख जाएगी।" एकदम सुरक्षित था। गर्भवती होने का कोई मौक़ा नहीं था अभी। दोस्तों, कह नहीं सकता, दूसरी बार जब उसे चोदा, तो पहली बार से ज्यादा मज़ा आया। क्योंकि लंड भी देर से झड़ा। चूत उसकी गीली थी। चूतड़ उछाल-उछाल कर चुदवा रही थी साली। उसकी चूचियों को तो मसल-मसल कर और चूस-चूस कर निचोड़ ही दिया मैंने। जाने फिर कब मौक़ा मिले। आज इसका बुर चूस ही लो। बुर का स्वाद तो इतना मज़ेदार था कि किसी भी शराब में ऐसा नशा नहीं। चोदते समय तो मैंने उसके होठों को खा ही लिया। "ये मज़ा ले मेरे लंड का मेरी जान। तोरी बुर में मेरा लंड - उसकी को चुदाई कहते हैं रानी। कहाँ छुपा रखा था ये चूत जानी।" कहते हुए मैं बस चोद रहा था और मज़ा लूट रहा था।
"चोद दीजिए साहबजी, चोद दीजिए। मेरी बुर को चोद दीजिए।" कह-कह कर चुदवा रही थी मेरी रानी। दोस्तों, चुदाई तो खत्म हुई लेकिन मन नहीं भरा। दबोचते हुए मैंने कहा, "रानी, मौका निकाल कर चुदवाती रहना। तेरी बुर का दीवानी है यह लंड। मालामाल कर दूँगा जानेमन।" यह कह कर मैंने उसे ५०० रूपये दिए और चूमते हुए, मसलते हुए रूख़सत किया।